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हल्के वाहन परिचालन का लाईसेंस बीमा कम्पनी के दायित्व के लिए पर्याप्त

Agency | Mar 26, 2021 | Motor Vehicle Act

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  • Mar 26, 2021
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हल्के वाहन परिचालन का लाईसेंस बीमा कम्पनी के दायित्व के लिए पर्याप्त

हैदराबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश गुडीसेवा श्याम प्रसाद के समक्ष भारतीय मोटर वाहन कानून 1988 की धरा 147 तथा 146 के अंतर्गत एक याचिका नदेंडला प्रसाद राव बनाम मयनेई श्री बिवासाराव व अन्य संबंधित प्रकरण में विचारार्थ प्रस्तुत की गई। दुर्घटना में ड्राइविंग लाईसेंस पर स्वीकृति के अभाव में ड्राईवर केवल नान ट्रांसपोर्ट वाहन के परिचालन का अधिकारी लेकिन उसके द्वारा बिना स्वीकृति के ट्रांसपोर्ट वाहन का परिचालन किया गया। ट्रिब्यूनल ने केवल इसी आधार पर बीमा कम्पनी को क्षतिपूर्ति के दायित्व से मुक्त करने से इनकार कर दिया। मोटर वाहन कानून की धारा 173, 166 तथा 168 के व्यक्तिगत शारीरिक क्षति को लेकर अपील की गई। घायल व्यक्ति की उम्र 55 वर्ष तथा वह एक किसान है। 30 प्रतिशत शारीरिक अक्षमता स्थाई स्तर पर स्वीकृत की गई। अपीलेंट न्यायालय ने 3000 रुपए प्रतिमाह की आय के साथ 11 मल्टीप्लायर व लाॅस आफ डिपेंडेंसी की राशि 118000 रुपए, 41883 रुपए चिकित्सा खर्च, 10000 रुपए शारीरिक कष्ट, 6000 रुपए पूर्व आय की क्षति व 2000 रुपए अतिरिक्त पोषण के लिए स्वीकृत किए। घटना का विवरण संक्षिप्त में यह है कि यह अपील अतिरिक्त जिला जज फास्ट ट्रेक कोर्ट गुंडूर के आदेश के विरुध्द दायर की गई है। अपीलेंट स्वयं क्लेमेंट है। उसके द्वारा धारा 166 के अंतर्गत क्लेम पिटिशन दायर की गई थी तथा 5 लाख रुपए की क्षतिपूर्ति का दावा किया था। प्रतिवादी संख्या एक से तीन के विरुध्द यह दावा स्थाई शारीरिक निशक्ता को लेकर व दुर्घटना में बहुत अधिक चोटों के कारण किया गया।
एक नवम्बर 2009 को सायं 4 बजे वह मोटरसाईकिल पर जा रहा था और उसको एक आटोरिक्शा ने टक्कर मार दी थी। प्रतिवादी संख्या एक से तीन उस आटोरिक्शा के ड्राईवर मालिक व बीमा कम्पनी है। ट्रिब्यूनल ने प्रथम प्रतिवादी का जवाब देने का अधिकार छीन लिया तथा दूसरा प्रतिवादी आटोरिक्शा का मालिक उपस्थित नहीं हुआ तथा बीमा कम्पनी ने लिखित में जवाब प्रस्तुत किया तथा उसमें कहा कि ड्राइवर को वाहन परिचालन का अधिकार नहीं था, क्योंकि उसके लाइसेंस में ट्रांसपोर्ट वाहन परिचालन की अनुमति नहीं है। ट्रिब्यूनल ने 112683 रुपये की क्षतिपूर्ति का आदेश दिया। यह दायित्व ड्राईवर व आटो के मालिक पर डाला गया, जबकि बीमा कम्पनी को इस दायित्व से मुक्त कर दिया। इसमें ट्रिब्यूनल ने नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी बनाम स्वर्ण सिंह 2004 SCC 1 : 2004 (1) TAC 321 (SC) का हवाला किया। इस आदेश के विरुध्द तथा क्षतिपूर्ति की राशि में वृद्धि के उद्देश्य से क्लेमेंट ने यह अपील दायर की। इसमें मुख्य बिन्दु यह तय किया जाना है कि क्या बीमा कम्पनी का क्षतिपूर्ति का दायित्व बनता है तथा क्या अपीलेंट को अधिक क्षतिपूर्ति दी जानी चाहिए। उपरोक्त प्रकरण में न्यायालय ने स्वीकार किया कि ड्राईवर के पास ट्रांसपोर्ट वाहन परिचालन का लाईसेंस नहीं था। उसके लाईसेंस पर ऐसा एंडोर्समेंट नहीं था, लेकिन उसके पास हल्के मोटरवाहन परिचालन का लाईंसेंस है, जिस वाहन से यह दुर्घटना घटित हुई वह महिन्द्रा मैक्स केब है, लेकिन केवल ड्राईवर के पास ट्रांसपोर्ट वाहन परिचालन का लाईसेंस न होना बीमा कम्पनी को क्षतिपूर्ति के दायित्व से मुक्त नहीं कर सकता है, क्योंकि यथार्थ में यह वाहन भी हल्के वाहन में ही आता है। न्यायालय ने कहा कि ईयाप्पन संबंधित प्रकरण में दिया आदेश भी इस प्रकरण में लागू होता है और ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी इस दायित्व से मुक्त नहीं हो सकती है।

अपीलेंट के अधिवक्ता ने कहा कि मेडीकल रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि अपीलेंट 30 प्रतिशत शारीरिक विकलांगता का शिकार हुआ है, जबकि ट्रिब्यूनल ने केवल 20 प्रतिशत विकलांगता को ही स्वीकार किया है। अपीलेंट के अधिवक्ता ने कहा कि अपीलेंट की आयु 55 वर्ष है तथा सरला वर्मा बनाम दिल्ली ट्रांसपोर्ट कोर्पोरेशन संबंधित (2009) 6 SCC 121:2009  (2) TAC 677 प्रकरण दिए गए आदेश के अनुसार मल्टीप्लायर 11 होना चाहिए, जबकि ट्रिब्यूनल केवल 9 का उपयोग किया है। ट्रिब्यूनल ने प्रतिमाह आय का आंकलन 3000 रुपए के स्तर पर किया है। न्यायालय ने कहा कि इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। न्यायालय ने आ देश में संशोधन के साथ 30 प्रतिशत शारीरिक विकलांगता को स्वीकार करते हुए लाॅस आफ अर्निंग के संदर्भ में 900 रुपये प्रतिमाह का आंकलन किया तथा सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुरूप 11 के मल्टीप्लायर के आधार पर 118800 रुपए की क्षतिपूर्ति का आंकलन किया। इसके अलावा 41883 रुपए चिकित्सा खर्च  तथा कृषि कार्य से वंचित रहने के कारण आय के घाटे के तौर पर भी 6000 रुपए की राशि दो माह की आय के बराबर स्वीकृत की तथा दर्द व सफरिंग के मद में ट्रिब्यूनल द्वारा स्वीकृत 2000 रुपए की राशि को बढ़ाकर 10000 रुपए करने का आदेश दिया तथा विलंबित भुगतान पर 7.50 प्रतिशत ब्याज के आदेश के साथ कुल 178683 रुपए की क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया गया तथा बीमा कम्पनी को यह राशि जमा करने का निर्देश दिया गया।

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